व्यंग कथा -योजना की मौत

राजा दरबार में बैठा था। मनोरंजन के कार्यक्रम चालू थे। राजा की इच्छाओं, इशारों को काजी समझ गए थे। राजा के विरोधियों को वही निपटा देते थे। इससे राजा को ढाल मिल गई थी। बदनाम होने का खतरा कम हो गया था।

मनोरंजन, शोर-शराबे के बीच गर्वित राजा ने दरबार में मंत्रियों से पूछा- 'राज्य के क्या हालात है? प्रजा को कोई परेशानी?'

घाघ मंत्री एक साथ बोल पड़े- 'अमन चैन है। आपके राज में राज्य ने इतनी प्रगति की है कि अखियां चुंधिया जाती है। राज्य जो कभी घुटनों के बल था अब उसकी ललकार से पड़ोसी राज्य, संसार के राज कांपते हैं।' राजा के मुंह पर मुस्कान चौड़ी हो गई। कैमरामैन सतर्क हो गए।

इतने में एक खबरची खबर लाया। राजा के कान में फुसफुसाया- 'पड़ोसी राजा ने राज्य की सीमा में घुसकर चौकी बना ली है।'

राजा के चेहरे पर मुस्कान खिली रही। हाथ से उसने खबरची को खिसक जाने का इशारा दिया।

दरबार में मंत्रियों में तारीफ करने की होड़ मच रही थी। शोर बढ़ गया था। महल के बाहर से आता दुखी प्रजा का अंतरनाद उसमें दब गया।

इतने में एक पुराना मंत्री बोला- 'महाराज बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए पूर्व राजा द्वारा शुरू की गई भोजन योजना, कुपोषण का शिकार होकर मृत अवस्था में पहुंचने की स्थिति में आ रही है।'

राजा की आंखों में नाराजगी झलकी। चेहरे पर मुस्कान बनी रही। बोला- 'विस्तार से बताओ।'

'महाराज, इस काम के लिए जिस अधिकारी को जिम्मेदार दी थी उसकी सेवानिवृत्ति के बाद से नई नियुक्ति नहीं हुई। उसका चार्ज उसके जिस अधीनस्थ अधिकारी को संभाल लेना था उसका सस्पेंशन हो गया। जिसका चार्ज उसके जिस अधीनस्थ अधिकारी के पास जाना था उसे आपने प्रमोशन देकर अच्छा विभाग दे दिया। अपने अधीनस्थ को चार्ज देकर वह चला गया। उसका अधिनस्थ कर्मचारी पहले से ही चार विभागों का चार्ज संभाले है। जूनियर कर्मचारी इस काम को कैसे संभालेगा?'

'हूं, इस काम का बजट तो बड़ा होगा। महत्वपूर्ण काम है। ऐसा करो हमारे मित्र को यह जिम्मेदारी सौंप दो। जितना बजट है उसमें ही उसे यह काम करना है। हमारी हर परेशानी को परेशान होकर वह संभाल लेता है। ऐसे मित्र कहां मिलते है! मुख्य अधिकारी का पद समाप्त कर दो। इससे राज्य का खर्चा भी बचेगा।'

वृद्ध मंत्री, जिसने यह समस्या बताई थी अंदर से परेशान था, ऊपर से जय जय कार कर रहा था।

इस तरह एक और सरकारी योजना का प्राइवेटीकरण हो गया था।

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