पुण्य स्मरण -मौन और मुस्कुराहट उनके हथियार थे!

कुछ लोग होते हैं जो समभाव से, शांतिपूर्वक,बिना दिखावे समाज के उत्थान के लिए कार्यरत रहते हैं। न नाम की चिंता करते हैं, न सम्मान की चिंता करते हैं। और जब चले जाते हैं तो यादें छोड़ जाते हैं।

ज्ञानमंदिर महाविद्यालय के पास, दशहरा मैदान के सामने, पेट्रोल पंप से सटे क्षेत्र में एक मूर्ति लगी है- नीचे नाम लिखा है पंडित शिवनारायण गौड। मैं उन्हीं की बात कर रहा हूं। जिन्हें उनके जानने पहचानने वाले पंडितजी के नाम से ही जानते थे।

उन्हें गुजरे इस 3 दिसंबर को 29 साल हो जाएंगे। उनके साथ काम करने वाली पीढ़ी में से चंद लोग ही बचे होंगे। उनके काम को देखने, लाभ उठाने वाली पीढ़ी भी बुढ्ढा गई फिर भी उनका काम आज भी बोलता है। विश्वास ना हो तो ज्ञानमंदिर महाविद्यालय का उदाहरण देख लीजिए।

इसका बीज पहले पुस्तकालय/वाचनालय के रूप में पड़ा। जब हरा भरा पौधा हुआ तो राष्ट्रभाषा भाषा समिति का परीक्षा स्थल बना। बाद में इंटर की कक्षाएं लगी। इंटर कॉलेज बना। और ज्ञानमंदिर के रूप में हरे भरे वृक्ष में बदल गया। यह सब पंडितजी की मेहनत और दूर दृष्टि का ही नतीजा था। अभी नीमच में चाहे कई कॉलेज हो मगर पहले पढ़ने के लिए उज्जैन, अजमेर जाना पड़ता था। कस्तूरबा बाल मंदिर भी उन्हीं की देन है। नीमच में सेवा दल की नींव भी उन्होंने ही डाली थी।

जावद की झंडा गली में उनका जन्म 17 अगस्त 1920 में हुआ था। पिताजी का साया बचपन में ही उठ गया था। मां ने गरीबी में मेहनत कर उनके लिए बहुत कुछ किया। उन्हें मां से लगाव भी बहुत था। पढ़ते-पढ़ाते हुए उन्होंने चार विषयों- संस्कृत, हिंदी साहित्य, दर्शनशास्त्र, समाजशास्त्र में एम.ए. किया। नीमच के महाविद्यालय में नौकरी करते हुए 1978 में सेवानिवृत हुए। नीमच से लगाव के कारण प्रमोशन भी नहीं लिए। ज्ञानोदय प्रेस की स्थापना की। जो पहले घंटाघर के पास के एरिया में था। फिर मसीह हॉस्पिटल के पास आया। प्रेस में उन्होंने कंपोजर (कंप्यूटर आने के बाद प्रिंटिंग प्रेस का यह कठिन काम समाप्त हो गया), पेपर कटिंग जैसे प्रेस के सभी काम किये।नीमच से पहले 'नईदिशा' मासिक पत्रिका निकाली। बाद में उसे साप्ताहिक किया। और फिर दैनिक 'नईविधा' का प्रकाशन शुरू किया। जो 50 साल से निरंतर प्रकाशित हो रहा है।

छोटे कद के, भरे पूरे शरीर के पंडितजी ठंड हो या गर्मी खादी का कुर्ता,धोती ही पहनते थे। गांधी टोपी लगाते थे। विचारों और व्यवहार में गांधीवादी थे, सत्ता से दूर वाले,सच्चे। उन्हें देखकर लाल बहादुर शास्त्री का भ्रम होता था। नीमच के समाज सेवा के लगभग हर एक काम में उनकी भागीदारी होती। उनके रहते धन का सदुपयोग ही होगा इस कारण धन की कमी नहीं होती। 'जाजू स्मृतिग्रंथ' उनके श्रम का ही परिणाम है।

उनको 10-11 साल की उम्र में पहली बार देखा था, ऐसा याद आता है। ज्ञानोदय की सबसे ऊपरी मंजिल पर बंडी (सिला हुआ बनियान जिसमें जेब होती थी) और धोती पहने जमीन पर बैठे पटियें पर कुछ लेखन कार्य कर रहे थे। उनका कमरा पुस्तकों से भरा पड़ा था। जिसमें उनके न होने का भ्रम होता था। उसके बाद जावद में 'धारा-उपधारा' कविता संकलन के विमोचन में आए थे। तब रात घर पर रुके थे। नागेश मेहता साथ थे। जावद के बस स्टैंड से सब्जी मंडी के रास्ते में उनके साथ बनी 'नईविधा- मालवी अंक' के प्रकाशन की योजना का साक्षी रहा। फिर मनासा के साहित्य अधिवेशन में उनके सम्मिलित होने जैसी अनेक बातें यादें हैं। वह कम बोलते थे। सटीक बोलते थे । मौन और मुस्कुराहट उनके हथियार थे। जिनका उपयोग वे बखूबी करते थे। कभी-कभी परिहास भी कर लिया करते थे।

नौकरी में रहते हुए छुट्टियों में यदा-कदा नीमच जाने का काम पड़ता था। कभी पापा(डॉ मंगल मेहता) के साथ या अकेले नईविधा में चला जाता था। दरवाजे के सामने सफेद लगदग कपड़ों में हिसाब करते प्रकाश

'मानव' दिखते थे और दरवाजे के पीछे के खांचे में लगी आराम कुर्सी पर पंडितजी अखबार पढ़ते हुए या झपकी लेते हुए मिलते थे।

चार विषयों में महारत, पढ़ने के शौकीन, किताबों से घिरे पंडित जी के ज्ञान की थाह पाना मुश्किल था। वे थोथे चने नहीं थे इस कारण बजते कम थे। अंतर्मुखी थे। आत्ममुग्ध तो बिल्कुल भी नहीं थे।

पंडितजी की अनेक विषयों पर गहरी पकड़ थी। नईविधा के संपादकीय इसका प्रमाण है। मालवी भाषा के व्याकरण पर उनसे ज्यादा पकड़ शायद ही किसी की रही हो। पंडितजी कहानीकार नहीं थे। फिर भी चर्चित सहयोगी उपन्यास 'सरपंच' में उन्होंने एक अध्याय लिखा था। उसकी प्रशंसा भी हुई थी। उनका लेखन संपूर्ण रूप से पुस्तककार में सामने नहीं आया। यह समाज का ही नुकसान है।

उनकी तर्कशक्ति, विचारों की गहराई का उदाहरण यदि आपको देखना है तो मानवेश्वरवाद लेख पढ़ कर देखिए।

उनकी पुण्यतिथि पर सादर श्रद्धांजलि।

*****

Write a comment ...

आंखिन देखी,कागद लेखी

Show your support

अगर आपके मन की बात है तो फिर दिल खोलकर उत्साहित भी करना चाहिए। लेखक को लेखन का मौल मिलना चाहिए।

Recent Supporters

Write a comment ...

आंखिन देखी,कागद लेखी

व्यंग्य, किस्से-कहानियां