लघुकथा- जिसकी परेशानी,उसकी वो जाने

मोहल्ले में समस्या खड़ी हो गई थी। किसी ख़ाली प्लाट की सफाई हुई , इस कारण उसका आशियाना छिन गया। सांप मोहल्ले कि ओर निकल आया।

वह चुपचाप निकल कर किसी सुरक्षित स्थान पर छिप जाने की फिराक में था। लोगों ने उसे देख लिया और हल्ला मचा दिया। सांप भी ड़र गया और लहराते हुए जा कर चौराहे के एक कोने के मकान की बाउंडरी और उससे बाहर अतिक्रमण कर बगीचा घेरने वाली दीवाल तक पहुंच कर उसने राहत की सांस ली।

लोगों की आवाज सुन कर उस घर के लोग बाहर आ गए। सांप का नाम सुन कर डंडे वगैरा भी सम्हाल लिए। समस्या थी कि सांप घर में न घुस जाए। आस-पास वाले भी इकठ्ठा हो गए।

एक बाजू वाला बोला -“सांप पकड़ने वाले को लाओ”

सामने वाला बोला - “एक डिब्बा रख दो। उसमें घुस जाएगा। फिर डिब्बा बंद करके छोड़ आना।”

भीड़ में से आवाज आई-“डिब्बा कौन बंद करेगा?”

कुल मिला कर घर वाले तनाव में थे और बाहर वाले मजे ले कर सुझाव दे रहे थे। ट्रोल कर रहे थे। भीड़ से सांप को परेशानी हो रही थी। ऊधर किसी ने पत्थर उछाला तो सांप ने दीवाल का कोना छोड़ कर सड़क के दूसरी ओर जाने में भलाई समझी।

अब तनाव में सामने के घर वाला आ गया, जो डिब्बे का सुझाव दे रहा था। उसने हिम्मत कर पास रखी लाठी उठाई और सांप को उठा कर आगे खिसका दिया।

भीड़ चिल्लाई -"मारना मत, मारना मत।"

मगर तब तक तो सांप का रास्ता बदल गया था। डिब्बे का सुझाव देने वाले के घर में सांप के आने का संकट कम हो गया था।

अब सांप चौराहे के तीसरे मकान की ओर मुड़ गया था।

तनाव में तीसरे घर वाला था। जो अभी तक दुसरो के संकट के मजे ले रहा था। जैसे मोहल्ले की समस्या उसकी न हो कर किसानों की, पहलवानों की, उजड़ती बस्ती वालों समस्या हो।

सांप आगे किस ओर मुड़ेगा | मालूम न था। फिलहाल तो परेशानी में तीसरे घर वाला था। बाकी के दो मकान वाले अब राहत की सांस ले रहे थे।

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