व्यंग्य कथा- चाटुकारिता की मुश्किलें

‘यू सी’, या ‘आई विल पुट इट दिस वे’- कहते हुए वे अक्सर मीटिंग में बॉस या प्रभावशाली व्यक्ति की इच्छाओं को घुमा फिरा कर रेखांकित कर देते और ‘गुड़ लिस्ट’ में कुछ पायदान ऊपर उठ जाते। उनका हमेशा यह भी प्रयास रहता था कि कोई ना कोई समस्या हर वक्त बनी रहें। और उसके हल के लिए उनकी जरूरत पड़ती रहें। समस्याएं खत्म हो जाती तो वे नई खड़ी करवा देते- ‘चोर से कहें चोरी कर और साहूकार से कहें जागते रहो’ वाली लोकोक्ति को क्रियान्वित करते हुए।

इसमें 6 फीट से कुछ ऊंचा कद, भरापूरा शरीर, टकला सिर और मंजरी आंखों पर चढ़ा मोटी फ्रेम का चश्मा उन्हें थोड़ा और प्रभावी बना देता। लोग तो कहते हैं कि उनका प्रभाव, ज्ञान बस आधे घंटे का है। उसके बाद तो उसकी कलई खुलने लगती। वे भी अपनी सीमाएं जानते हैं इसलिए अपना ज्यादा समय कहीं गुजरने नहीं देते।

कई बार ऐसा होता कि बॉस खुद दुविधा में रहता। तब उन्हें बातों की पलटियां खाना पड़ती। एक बार ऐसा ही हुआ। कॉन्फ्रेंस रूम का निर्माण चल रहा था। बॉस ने पूछा- ‘मिस्टर भरत, कुर्सियां कैसी लें?’

‘यू सी, मैचिंग क्लॉथ ठीक रहेगा।’

‘लेदर कैसा रहेगा?’

‘बहुत बढ़िया। आई विल पुट इट दिस वे- लेदर विल गिव रिच, क्लासिक लुक।’

‘लेदर में समय के साथ क्रैक आ जाते हैं’

‘यू सी, इसलिए तो क्लॉथ सजेस्ट किया था। मेंटेनेंस खर्च कम लगेगा।’- मुस्कुरा कर भरत बोलें।

‘हर चीज में पैसा मायने नहीं रखता, संस्था की रेपुटेशन भी देखना पड़ती है।’

‘ यस, आई विल पुट इट दिस वे- पैसा ही पैसे को खींचता है। यू आर अब्सोल्युटली राइट।’

लेदर और क्लॉथ का सिक्का उछलता रहा। मिस्टर भरत भी बिना थके पलटी मारते रहे। उन्नति की ऊंचाई पर पहुंचने के लिए उन्हें चाटुकारिता की सीढ़ियां रोज चढ़ना पड़ती है। जो झूठ, मक्कारी, षड्यंत्र, बेइज्जती, धोखे के पायदानों से बनी होती है। फिसलन भरी। इसकी चढ़ाई कोई सरल काम नहीं होता। उन्हें रोज इस कठिन दौर से गुजरना पड़ता है। कोई क्या जाने!

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