कहानी - चालें

"जब से वर्ल्ड बैंक का नाम जुड़ा है तब से ही संस्थान की हालत देश जैसी हो गई। सारा भाईचारा समाप्त। दोस्ती का ढोंग। पांव छूने के बहाने पांव खींचने का काम होने लगा। अदृश्य शतरंज की बिसात बिछी हुई है। सब लोग चालें चल रहे हैं। कई खिलाड़ी मैदान में हैं। कई बार ब्रिज की तरह एक दूसरे के पार्टनर बन जाते हैं। कुछ काल्स देते हैं। फिर अचानक दुश्मन बन जाते हैं। हर एक का एक ही ध्येय है। पैसा कमाना। दूसरों को नीचा दिखाना। यह तो अच्छा हुआ कि गांधी जी ने असहयोग आंदोलन के दौरान साधन की पवित्रता को लेकर आंदोलन वापस ले लिया अन्यथा हम स्वतंत्रता की और ज्यादा वर्षगांठ मना रहे होते। और मूंदड़ा कांड, बोफोर्स, शेयर, अयोध्या, दंगे, रथयात्रा जैसे छोटे-मोटे मामले हमें विचलित नहीं कर रहे होते। विश्व बैंक हमें पूरी तरह से मार चुका होता। धीमा जहर है। मीठा भी। खाने वाले को आनंद आता है। और कब सब समाप्त हो जाता है, मालूम भी नहीं पड़ता। यही हाल हमारे यहां भी है।" खीज भरे स्वर में मिस्टर सतपाल बोले।

           बात की शुरुआत हुई थी चपरासियों के बुरे बर्ताव से और पहुंच गई देश, विश्व बैंक तक। पिछले कई दिनों चपरासियों ने अपना व्यवहार बदल लिया था। अवज्ञा आंदोलन जैसा कर लिया था। मगर आंदोलन सविनय वाला नहीं था। 

           सवेरे समय पर दरवाजे नहीं खुले। घड़ी के कांटों से जहां घंटे, सायरन बजते हो समय पर दरवाजे न खुलना बड़ी बात होती है। थोड़ी खलबलाहट हुई। कुछ अफसरशाही भी दिखलाई पडती यदि वे, वे यानी भगवान और मूरत नशे में टून्न न दिखलाई पड़ते। उन्होंने लड़खड़ाते हुए दरवाजा खोला। एक ने सायरन बजाया। दूसरे ने पंखा चलाया। अपने स्टूलों को बिना साफ किए उन पर पसर गए।

           खुले दरवाजे से स्टाफ अंदर आया और सिविल स्टाफ में जमा हो गया। यह थोड़ा बड़ा रूम है। इसी रुम में समस्याएं ढूंढी जाती। उनके प्रभाव को परखा जाता और हल खोजे जाते। इतनी बड़ी समस्या हो उस पर बहस न हो ऐसा कैसे हो सकता था! 

"मेरा पहला पीरियड था। अब नहीं लेने वाला मैं तो। यह भी कोई समय है?" सरदार जी ने अपनी दाढ़ी खुजलाते हुए कहा।

         वैसे भी समय पर कौन सा ले लेते। वहां बैठे अनेकों के मन में यह बात आई। कोई बोला नहीं।

        अपनी बात पर कोई प्रतिक्रिया न पाकर सरदार जी मूंछों के बालों को सहलाते हुए बोले- "मैं प्रिंसिपल को रिपोर्ट करूंगा।" 

"तो इससे होगा क्या? क्या करेगा वो? पिछली बार की तरह इस बार कार्रवाई करने के लिए किसी और पर तो दबाव नहीं डाल सकता वह। इस बार वार करने के लिए किसी और का कंधा थोड़ी मिलेगा उसे।" मिस्टर जावेद ने कहा।

       बहस में गर्मी आ गई थी। आवाजें  तेज हो गई थी।

"क्या बात करेगा हिंजड़ा?" बाहर बैठा भगवान चपरासी बुदबुदाया।"एक बार पीछे से वार क्या कर लिया। हीरो समझ लिया खुद को।अब करें देखें कुछ !" 

          भगवान नशे में था। नशे की गोलियां खाई थी उसने कल रात। उसकी थोड़ी खुमारी सवार थी उस पर। महीने के आखिरी दिन चल रहे थे। घर में खाने को कुछ नहीं था। गम मिटाने के लिए दारू की जरूरत थी। फटी जेब। उधार मांगने मूरत के पास के गया। नंगा क्या देता कपड़े दूसरों को! मूरत ने उसे यह सस्ता उपाय बतलाया। क्या नशा है ! क्या मजा है ! वह उड़ रहा है और ये मास्टर है कि गुजरी बातें याद दिला कर सारा मजा किरकिरा कर रहे हैं। वो काम चलाऊ प्रिंसिपल मंगवानी साला, क्या कार्रवाई करेगा? पिछली बार उसने असली प्रिंसिपल से सस्पेंड करवा दिया था तब उसकी यूनियन ने मंगवानी के घर के बाहर तंबू तान दिया था। टें बोल गई थी। हड़ताल खत्म हुई तब चैन आया। अब अकड़ा फिरता है लोगों में।


           चपरासियों का देर से आना। घंटियों की आवाज को न सुनना और नशे में होना बड़ी घटना थी। प्रिंसिपल को सूचना मिलनी ही चाहिए। राजाराम  और जेपी ने इस मौके को हाथ से छोड़ना उचित नहीं समझा। दोनों का सीनियर स्केल का प्रमोशन अटका था। पुराने संबंध भी थे। आंखों ही आंखों में इशारे हुए और दोनों निकल आए स्टाफ रूम से।

"देखना छोड़ेगा नहीं, मंगवानी इन सालों को !"

"पहले जब डिपार्टमेंट का हेड था तभी सस्पेंड करवा दिया था सांवला से। तो अब क्या है! खुद ही प्रिंसिपल है। स्ट्रीक। सांवला जैसा लल्लू-पंजू नहीं है।"

      बातें करते-करते ही प्रिंसिपल चेंबर आ गया था। दरवाजा खटखटाया। दोनों अंदर चले गए। 

"हेलो डीयर। कैसे हो राजाराम, जेपी?"

"यह क्या हो रहा है साहब आप के राज में !" जेपी ने कहा।

         मंगवानी ने सुना। मुस्कुरा भर दिया। 

"स्टाफ रूम समय पर नहीं खुलता। समय पर सायरन नहीं बजता। और तो और…." भगवान और मूरत वाली बात अधूरी रह गई। एक चपरासी कुछ कागज लेकर अंदर आया था। मंगवानी उन पर हस्ताक्षर करता रहा। थोड़ी देर बाद उसने पूछा- "चाय पियोगे?" बिना उन लोगों के उत्तर की प्रतीक्षा किए चपरासी को चाय लाने का आदेश दिया। चपरासी के जाते ही राजाराम बोला- "भगवान और मूरत नशे में चूर है। सस्पेंड कर देना चाहिए दोनों को।" 

          मंगवानी मुस्कुराया। उसे सोचने के लिए कुछ समय चाहिए था। उसके दिमाग के घोड़े खतरे को भांप कर दौड़ने लगे। कहीं इस घटना के पीछे भरत का तो हाथ नहीं? समस्याएं खड़ी कर, उन्हें सुलझाने में तो माहिर है वह। वर्ल्ड बैंक की नई बिल्डिंग के काम में हेराफेरी न कर पाने के कारण एक तो वैसे ही खार खाए बैठा हैं। यदि उसने चपरासियों के विरुद्ध कुछ कार्रवाई की तो वह हड़ताल कर देंगे। घर के सामने तंबू लग जाएगा। सोच कर उसे पसीना आ गया। भरत... तंबू... अनुशासन...। अचानक उसे ख्याल आया कि यह वक्त नहीं है, ज्यादा वक्त लेने का। "मैं आता हूं, देखता हूं। अभी तो काम ही इतना है कि क्या कहें।  हेड क्लर्क को डायरेक्टर के ऑफिस जाना है। कुछ सीनियर स्केल के पेपर तैयार करवाने हैं।"

           सीनियर स्केल ने बात का रुख मोड़ दिया। अब प्रमोशन की बातें होने लगी। वे मूल समस्या को भूल गए। चाय पी कर चले आए।

            वे चाहे भूल गए हो मगर मंगवानी नहीं भूल पाया। बड़ी मुश्किल से मौका हाथ आया है। मौका हाथ से जाने दिया तो सारी जिंदगी बीत जाएगी। रिटायर हो जाएगा मगर प्रिंसिपल नहीं बन पाएगा। यदि चपरासी वाले इस मामले को संभालने में कुछ गड़बड़ हो गई तो भरत फायदा उठा लेगा। उसने अपना दांव खेला तो मेरा पत्ता साफ ! कुछ तो करना ही पड़ेगा। सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।

           भरत ने स्टाफ में होने वाली बहस को अपने चेंबर में बैठे बैठे सुना। कुछ गुना। मुस्कुराहट दौड़ आई चेहरे पर। उसने अपने गंजे सिर पर हाथ घुमाया। कमर में बंधे पट्टे को ढ़ीला किया। अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे ! मंगवानी साला, अपने दो दिन के राज में चमड़े के सिक्के चलाना चाहता है। हर एक काम में टांग। टेबल के इस ओर से उस ओर बैठ जाते ही कितना बदल जाता है आदमी! कल मीटिंग में कैसा चढ़ रहा था उस पर। अब मालूम पड़ेगा बच्चू। चपरासियों के विरुद्ध एक्शन तो ले ! पिछली बार मैंने ही तंबू ऊखड़वाया था तेरे घर के सामने से। कैसे रोने जैसा हो गया था। सांवला तक ने पनाह मांग ली। तो तुम क्या चीज हो बच्चू ! भरत को सांवला की बात से दो माह पुरानी घटना की याद आ गई। कैसे बेवकूफ बनाया था उसने सांवला और अन्य स्टाफ को। कालेज के समय को बदलवाने घटना में उलझा कर। याद कर मुस्कुरा दिया। क्या खेल खेला था वह भी । लड़कों को हड़ताल करने के लिए उकसाने वाला वह ! सांवला की ओर से हड़ताल तुड़वाने वाला वह !! और समस्या का समाधान भी उसकी अपनी इच्छा का। तब तुमने भी कम हाथ-पांव नहीं फेंके थे, सांवला की नजरों में चढ़ने के। भूल गए उन बातों को ! वह तो ठीक है। पुरानी बातें हैं। नई बिल्डिंग का ही मामला ले ले। करोड़ों का काम है, लाखों में हेरा फेरी  तो होनी ही है ! किसी घपले में उसके लिप्त होने का कोई सबूत नहीं। बदनाम कौन सांवला ! और ज्यादा पैसे खाए किसने……।लोग तो कहते हैं कि सांवला बीमार भी मेरे कारण पड़ा। तुम संभलना बच्चू !

             स्टाफ रूम में घंटिया बजा बजाकर स्टाफ थक गया। घंटियों के स्वर भगवान और मूरत की तरंग को भंग न कर सके। कुछ थक हार कर खुद कैंटीन चले गए। कुछ हमेशा की तरह हस्ताक्षर करने के बाद अपने धंधे संभालने चले गए। वे लोग वापस आए तब तक भगवान भाई का नशा कुछ पायदान नीचे उतर आया था। अचानक बोर्ड पर लाल बत्ती दिखलाई दी। स्टाफ रूम तक गए। हमेशा की तरह खड़े रहे कि कोई कुछ बोले। घंटी बजाए देर हो गई थी और शायद बजाने वाला वहां था भी नहीं।

"घंटी किसने बजाई थी?" लड़खड़ाते हुए गुस्से भरे स्वर में भगवान भाई ने प्रश्न किया।

               सब चुप रहे। आश्चर्य से एक दूसरे की ओर देखा। किसी को जवाब न देते पाकर मिस्टर कृष्ण ने उत्तर दिया- "अभी तो किसी ने नहीं बजाई।"

               भगवान भाई संतुष्ट होकर अपनी सीट पर बैठ गए। तरंग में लाल बत्ती बंद करना भूल गए। थोड़ी देर में निगाह बोर्ड पर गई तो फिर लाल बत्ती। 

                लाल बत्ती यानी खतरा। जीने नहीं देंगे ये लोग। गुस्से में खड़े होने के चक्कर में भगवान भाई लड़खड़ा कर गिर गए। सम्हले। खड़े हुए और फिर स्टाफ रूम तक पहुंचे।

"परेशान कर रखा है। घंटी किसने बजाई? काम-धाम कुछ नहीं बस घंटी बजाकर हुकुम सुना देते हैं।" उच्चारण साफ नहीं था, मगर स्वर पंचम तक पहुंच गया था। 

      लोगों को अफसरशाही न दिखला पाने के कारण परेशानी हो रही थी। ऊपर से पंचम स्वर ने आग में घी डाल दिया। 

"यहां किसी ने घंटी नहीं बजाई। तमीज से बोलना सीखो।" मिस्टर कृष्ण भी ऊंचे स्वर में बोले।

          भगवान भाई की सारी कुंठाएं, दमित इच्छाएं उनके नशे में होने का फायदा उठाकर उभर आई। 

"तो क्या करोगे? मारोगे? वैसे भी जीने कब देते हो !"

"किसने कहा मारने की। जाओ, जाकर अपना काम करो।" इस बार दूसरे लोग बोले।

            खतरे को भांप चेतना लौट आई। लगा गलती कर बैठे। कुछ समय पहले मंगवानी को कुछ बोल दिया था। उसी का नतीजा था सस्पेंशन…. हड़ताल... तंबू... खाली चूल्हा..। इस बार भी वही सब हुआ तो? पहले से ही घर में खाने के लाले है। इस बार यह सब हुआ तो लोग तो रोटियां सेंक लेंगे मगर उसके बच्चे भूखे मर जाएंगे। अब सारा नशा हिरण हो गया। बचाव का सबसे अच्छा तरीका आक्रमण होता है। भगवान भाई आक्रामक हो गए- "तुमने मुझे नीची जात का क्यों बोला?"

"किसने बोला?"

"तुमने"

"कब"

"अभी। मैं नीची जात का हूं इसका मतलब यह तो नहीं कि तुम मुझे बेइज्जत करो।"

           समस्या की गंभीरता को भांप कर कुछ ने खिसकना,तो कुछ ने झगड़े को शांत कराना उचित समझा।

             भरत ने इस झगड़े को भी अपने चेंबर में बैठे बैठे सुना। उसे लगा तवा गरम है, रोटियां सेंक लेनी चाहिए। उसे सक्रिय होना चाहिए। वह स्टाफ रूप में चला गया। वहां इसी बारे में ही चर्चा थी। धीमे स्वर में। "हौसले तो देख लो। समय पर आते नहीं। नशे में रहते और दादागिरी करते हैं।" मिस्टर कृष्ण ने कहा। 

"हां, सुना मैंने भी। ये तो कोई तरीका नहीं बिहेव करने का! कुछ एक्शन तो होना ही चाहिए इन लोगों के खिलाफ। ऐसे तो ये सिर पर चढ़ जाएंगे।" भरत ने कहा। चश्में के अन्दर से अपनी मंजरी आंखों से लोगों पर उसके प्रभाव को परखा। मन ही मन सोच मुस्कुराया। कभी मंगवानी ने भी यही शब्द कहे थे प्रिंसिपल सांवला से।

             तब तक नई घटना की सूचना इंचार्ज प्रिंसिपल तक पहुंच गई थी। भरत के सक्रिय होने की भी। जिसका डर था वही हुआ, मंगवाने ने सोचा। अब तो कुछ करना ही पड़ेगा। शीघ्र। उसने रिवाल्विंग चेयर को पीछे धकेला। पीढ़ टिका उसे पीछे झुकाया। कितने आनंद और प्रभाव वाली कुर्सी है। तनाव में भी जीने का मजा देती है। इस समस्या को भी निपटना पड़ेगा। अभी। उसने पेन उठा, स्लिप पर कुछ रगीदा। चपरासी को कागज थमा, आदेश दिया- "मिस्टर भरत को बुला लाओ।"

           चपरासी ने स्टाफ रूम में भरत को पत्र दिया। वहां से चेंबर में जाकर भरत ने स्लिप को पढ़ा। स्लिप पढ़ कर बुदबुदाया- "अब क्या रोड़े अटकायेगा साला। कमाने भी नहीं देगा।" कुछ पेपर बटोरे। जाने से पहले पानी पीने की इच्छा हुई। घंटी बजाने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि अभी हुए हादसों की याद हो आई। यदि यही सब उसके साथ हुआ तो ! सारा खेल चौपट हो जाएगा। हाथ खींच लिया। अपने चेंबर से निकल आया। प्रिंसिपल के चेंबर में घुसा। तब तक एक तरह का तनाव उस पर छाया था। गंजे सिर के चंद बालों को उसने व्यवस्थित किया। चश्मे को नाक पर पीछे किया और चेंबर में चला गया।

             उसके अंदर घुसते ही चपरासी को दरवाजा बंद करने और लाल लाइट जलाने का आदेश हो गया। आधा घंटा लाल बत्ती जलती रही। मंत्रणा चलती रही। बाहर निकला तो भरत खुश था। मंगवानी का चेहरा भी दमक रहा था।

            उसके निकलते ही मंगवानी ने  हेड क्लर्क को नई बिल्डिंग के रोके गए बिल पास करने का आदेश दे दिया। हेड क्लर्क चौंक गया। उसने समस्याएं रखी। मगर आदेश अटल था।

           भरत ने चेंबर में पेपर रखें। गाड़ी में सवार हुआ और कहीं चला गया।

         थोड़ी देर बाद चपरासियों की यूनियन का लीडर आया और भगवान भाई को स्कूटर पर बिठा कर ले उड़ा।

         थोड़ी देर बाद लीडर वापस आया। मंगवानी से मिलने चला गया। भरत को भी बुलाया गया।

          बाद में मिस्टर कृष्ण और अन्य लोगों ने प्रिंसिपल से चपरासियों के दुर्व्यवहार की शिकायत की। उन्हें आश्वासन मिला मगर कोई कार्रवाई नहीं की गई।

         ठेकेदार ने बिल पास होने पर हिस्सा भरत के हवाले किया तो वह बोल उठा- "भगवान की जय हो।"

 उधर यूनियन लीडर के घर में मुर्गा कटा था। बोतल खुली थी। मुर्गा फिर भी खुश था। सस्पेंशन से तो बचा !

            इस समस्या, समस्या के समाधान पर स्टॉप रुम में फिर से बहस छिड़ी थी। तब मिस्टर सतपाल ने खीज भरे स्वर में देश और वर्ल्ड  बैंक को आपस में जोड़ कर देखा था।

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आंखिन देखी,कागद लेखी

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