अन्य जानवरों की पीठ पर चढ़कर कई बार लोमड़ी अंगूर का स्वाद ले चुकी थी। पीठ पर चढ़ने के बदले में उसे उनको भी हिस्सा देना पड़ता था। तो कभी अपनी पीठ पर चढ़ाना पड़ता था। उनकी मर्जी और शर्तों पर समझौता करना पड़ता इस कारण झगड़ा होता। झगड़ा कभी-कभी इतना बढ़ जाता है कि सभी ओंधे मुंह गिर जाते। अंगुर बिखर जाते। गिरने के बाद अपना सा मुंह उठाकर सभी अलग-अलग दिशाओं में एक दुसरे को दोष देते हुए चले जाते। एक दूसरे का मुंह फिर कभी ना देखने की धमकी देकर।
थोड़े समय बाद अंगूरों की याद मुंह में पानी लाती तो सब जानवर अकेले या अलग-अलग छलांग लगते। इन जानवरों को इकट्ठा न होने देने के लिए हाथी या गेंडा उनमें से किसी को दाना डाल देते और वे खुश हो जाते और पाला बदल लेते।
लोमड़ी को इससे खुश नहीं मिलती। उसे तो पूरी बेल ही चाहिए थी। उसने एक तरकीब सोची खरगोश के मुखिया, उनके पंडे-पुजारी से मिली। बात की।उकसाया। प्रलोभन दिए। स्वार्थ सजाये।
मुखिया, पंडे-पुजारियो ने शोर मचाया। भीड़ जमा की। माहौल बनाया। बंगले पर खरगोशों का हक जताया। बंगले पर हमला किया। बंगला गिरा दिया। बेल भी गिर गई। हमले में कई खरगोश मिट्टी में मिल गए। लोमड़ी टूटी बेल को लेकर चंपत हो गई। बचे हुए खरगोश, पंड़े-पुजारी चिल्लाए तब तक तो देर हो गई थी। भागने की जल्दी के चक्कर में टूटी बेल के कई अंगूर भी बिखर गए।
लोमड़ी आज भी उन अंगूरों को खोज रही है।
आपने अपने शहर में भी उसे अंगूर खोजते हुए देखा होगा।
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